बेवफ़ा हर बार मुझको यूं दग़ा देता रहा ।
ग़ैर के ख़त पर मेरे घर का पता देता रहा॥
उसके लब पे गालियों के संग थे तो क्या हुआ,
मैं फ़क़ीराना तबीयत था दुआ देता रहा॥
रोग था ये प्यार का मुमकिन ना था जिसका इलाज़,
क्या मरज़ था और वो किसकी दावा देता रहा॥
बाटने से बाद रही है इल्म की दौलत जनाब ,
सबको मैं देता रहा मुझको खुदा देता रहा॥
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