रात भर फिर जगा रही है मुझे।
याद उसकी सता रही है मुझे ॥
दिल के दरवाज़े पे देकर दस्तक,
कोई लड़की बुला रही है मुझे॥
ये ज़रूरत भी क्या अजब शै है,
गलियों गलियों फिरा रही है मुझे।
तुमसे थोड़ा सा अलग होते ही,
दुनिया आंखे दिखा रही है मुझे॥
कुछ सियासी जमात ने खाया,
कुछ ये महगाई खा रही है मुझे।
ज़िंदगी देखो आजकल "सूफ़ी",
मय के प्याले पिला रही है मुझे।
राकेश”सूफ़ी”
याद उसकी सता रही है मुझे ॥
दिल के दरवाज़े पे देकर दस्तक,
कोई लड़की बुला रही है मुझे॥
ये ज़रूरत भी क्या अजब शै है,
गलियों गलियों फिरा रही है मुझे।
तुमसे थोड़ा सा अलग होते ही,
दुनिया आंखे दिखा रही है मुझे॥
कुछ सियासी जमात ने खाया,
कुछ ये महगाई खा रही है मुझे।
ज़िंदगी देखो आजकल "सूफ़ी",
मय के प्याले पिला रही है मुझे।
राकेश”सूफ़ी”
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