Sunday 23 October 2011

मेरी अर्ज़े तमन्ना पे सितमगर कुछ नहीं कहता।

मेरी अर्ज़े तमन्ना पे सितमगर कुछ नहीं कहता।
गुज़र जाता है रास्ते से वो हँसकर कुछ नहीं कहता॥
हमारी ज़िंदगी का इस तरह बर्ताव है हमसे,
कि जैसे नाचनेवाली का शौहर कुछ नहीं कहता॥
किसी कि बेवफ़ाई ने उसे पत्थर बना डाला,
अब ये इल्ज़ाम भी उसपे  कि पत्थर कुछ नहीं कहता॥
बहक जाते हैं कैसे लोग बस दो चार क़तरों में,
यहाँ मैं पूरा मैख़ाना भी पीकर कुछ नहीं कहता,
बहादुर आदमी ही जंग का नक्शा बदलता है,
मियां तारीख शाहिद है कि कायर कुछ नहीं कहता॥
तू हरजाई है तू  है बेवफा, फिर भी मैं तेरा हूँ,
ये दुनिया कह रही है तेरा “दिलबर” कुछ नहीं कहता॥
                        राकेश  “सूफी”

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