ज़हर से भरपूर हैं ये तितलियाँ, बचकर रहो।
बेवफ़ा हैं दोस्तों ये लड़कियां बच कर रहो॥
इतना भी अच्छा नहीं है ये अकेलापन जनाब,
बनके नागन डस न लें तनहाइयाँ बचकर रहो॥
चंद लम्हों कि खुशी पे मौत को डावात न दो,
जान लेवा फैली हैं बीमारियाँ बचकर रहो॥
याद उसकी आ रही है फिर से शायद आपको,
खुल गईं है यादों कि वो खिड़कियाँ बचकर रहो॥
ख़त्म करिए दुनियावालों जल्दी से रस्म–ए-दहेज,
जल रही हैं देखो कितनी बेटियाँ बचकर रहो॥
बंद करिए लिखना “सूफी” इतनी सच्ची बात को,
काट लेता है ज़माना उँगलियाँ बचकर रहो॥
राकेश “सूफी”
No comments:
Post a Comment